राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी रणनीति के मुताबिक कांग्रेस आलाकमान को इस बार अपने सामने झुकने को मजबूर कर दिया , मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक विधायकों ने 25 सितंबर को दिल्ली से आए पर्यवेक्षकों की बैठक में ना जाकर शांति धारीवाल के घर मीटिंग करके जिस तरह से सामूहिक इस्तीफे सीपी जोशी को सौंपे थे , उसी समय से कांग्रेस आलाकमान अशोक गहलोत एवं उनके समर्थक नेताओं पर एक्शन लेने की सोच रहा था ।
लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत ने अपने साथ 102 विधायकों के होने का दावा करते हुए मानो आलाकमान के सामने ही चुनौती पेश कर दी हो ।
वैसे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद हेतु चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे , लेकिन सोनिया गांधी के कहने पर हुए अध्यक्ष पद हेतु चुनाव लड़ने के लिए राजी भी हो गए । लेकिन नामांकन दाखिल करने से पहले अशोक गहलोत ने जिस तरह से राजस्थान में राजनीतिक ड्रामें को अंजाम देकर अध्यक्ष पद हेतु चुनाव ना लड़ने का ऐलान कर दिया।
वहीं इसके बाद राहुल गांधी अक्सर अपने भाषणों में जिस अड़ाणी ग्रुप को चोर बताते हैं , वहीं गौतम अडाणी को राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दोस्त बताते हुए नजर आते हैं , उसी गौतम अडानी के लिए राजस्थान सरकार ने रेड कारपेट बिछाया है , इससे राहुल गांधी और असहज नजर आ रहे हैं हालांकि राहुल गांधी ने कहा है कि अडाणी जी ने जो राजस्थान में निवेश किया है वह नियमानुसार है ।
लेकिन इसी बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि वे विकास के लिए अमित शाह के बेटे जयंत शाह की मदद के लिए तैयार है ।
इन बयानबाजी से समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व कांग्रेस हाईकमान के बीच दूरियां लगातार बढ़ती जा रही है , कांग्रेस आलाकमान भी अशोक गहलोत की इस रणनीति में फस गया है और अब देखना ये होगा कि कांग्रेस आलाकमान किस तरह से इस सियासी हलचल को खत्म कर पाता हैं।
यह भी पढ़ें – गुजरात चुनाव ओपिनियन पोल 2022 : इस बार गुजरात में कौन बनाएगा सरकार