लोंगेवाला युद्ध: जब 120 भारतीय वीरों ने रचा इतिहास, पाकिस्तानी सेना को दी करारी शिकस्त
राजस्थान के थार रेगिस्तान में स्थित लोंगेवाला पोस्ट, भारतीय सेना की वीरता और साहस का प्रतीक है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान 4-5 दिसंबर की रात को हुए लोंगेवाला युद्ध ने भारतीय सैनिकों की अदम्य शक्ति और रणनीतिक कौशल को दुनिया के सामने ला खड़ा किया। इस युद्ध में मात्र 120 भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के 2,000 से अधिक सैनिकों और 45 टैंकों के विशाल दस्ते को धूल चटाई, जिसे आज भी सैन्य इतिहास में एक चमत्कार के रूप में याद किया जाता है।
युद्ध की पृष्ठभूमि
1971 का भारत-पाक युद्ध बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान शुरू हुआ था। पाकिस्तानी सेना ने ‘ऑपरेशन लब्बैक’ के तहत जैसलमेर सेक्टर में लोंगेवाला पोस्ट पर हमला करने की योजना बनाई। उनका उद्देश्य था कि अचानक हमले के जरिए लोंगेवाला पर कब्जा कर रामगढ़ और जैसलमेर की ओर बढ़ा जाए। इसके लिए पाकिस्तान ने अपनी 51वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड, 45 टैंक (अमेरिकी शेरमेन और चीनी टी-59) और सैकड़ों वाहनों को तैनात किया। दूसरी ओर, लोंगेवाला पोस्ट पर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में 23वीं पंजाब रेजिमेंट के 120 सैनिक और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के कुछ जवान तैनात थे। उनके पास न तो टैंक थे, न ही भारी तोपें, केवल हल्के हथियार और एक जीप-माउंटेड रिकॉइललेस गन थी।
रणनीति और साहस का प्रदर्शन
4 दिसंबर 1971 की रात, जब पाकिस्तानी टैंकों और सैनिकों ने लोंगेवाला पोस्ट को चारों ओर से घेर लिया, तब मेजर चांदपुरी ने अपने सैनिकों को पीछे हटने के बजाय डटकर मुकाबला करने का आदेश दिया। भारतीय सैनिकों ने रातभर दुश्मन का सामना किया और अपनी स्थिति को मजबूत रखा। उनकी रिकॉइललेस गन ने कई पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर दिया, जिससे दुश्मन की रणनीति को झटका लगा।
सुबह होने पर भारतीय वायुसेना (आईएएफ) के चार हंटर जेट विमानों ने युद्ध का रुख पूरी तरह बदल दिया। इन विमानों ने पाकिस्तानी टैंकों और वाहनों पर सटीक हमले किए, जिससे दुश्मन की सेना में भगदड़ मच गई। भारतीय वायुसेना ने लगभग 22 टैंकों को नष्ट किया, और बाकी टैंक रेत में फंस गए या पीछे हट गए। इस हमले में पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान हुआ, जिसमें 200 से अधिक सैनिक मारे गए और सैकड़ों वाहन नष्ट हुए।
लोंगेवाला युद्ध भारतीय सेना और वायुसेना के बीच उत्कृष्ट समन्वय का उदाहरण है। इस युद्ध ने न केवल पाकिस्तान की आक्रामक योजनाओं को विफल किया, बल्कि भारतीय सैनिकों के साहस और दृढ़ संकल्प को भी दुनिया के सामने प्रदर्शित किया। मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को उनकी वीरता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया, जबकि अन्य सैनिकों को भी वीरता पुरस्कार मिले।