सारण गोत्र का इतिहास , Saran Jat Jati सहारण गोत्र के बारे में
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जाट जाति के अंतर्गत आने वाली सारण ( सहारण ) जाति के इतिहास के बारे में विस्तार से बातें खंगालने की कोशिश करेंगे , बात अभिलेखों के आधार पर बताया जाता है कि विक्रम संवत 1122 में राजा सारण द्वारा सहारनपुर राज्य के स्थापना की गई , बताया जाता है कि राजा सारण के पिता का नाम राजा बलि था।
सारण गोत्र की दो प्रमुख उपशाखाएं बताई जाती है एक काजंला एवं रंधावा। इस गोत्र को भाषा के आधार पर अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग नाम से बोला जाता है कहीं पर सारण बोला जाता है तो कहीं पर सहारण बोला जाता हैं।
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सारण जाति के लोग राजस्थान के जयपुर , अजमेर , अलवर, दोसा , जोधपुर , नागौर , जैसलमेर, पाली , जालौर , सीकर , चूरू ,बीकानेर , हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर , सिरोही सहित कई जिलों में निवास करते हैं। हरियाणा के भिवानी , जिंदे , हिसार , फतेहगढ़ इत्यादि स्थानों पर जाट जाति के अंतर्गत आने वाली सहारन गोत्र के लोग रहते हैं ।
उत्तर प्रदेश में गोत्र के 20 गांव है यानी की 20 गांव में सारण गोत्र की यह खाप हैं ये गांव मेरठ , सहारनपुर , मुजफ्फरनगर , गाजियाबाद एवं बुलंदशहर के आसपास है।
बताया जाता है कि पाकिस्तान के सिंध एवं पंजाब प्रांत में भी सारण गोत्र के लोग रहते हैं , विशेषकर उमरकोट एवं थारपरकर के आसपास रहते हैं।
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सारण गोत्र के अंतर्गत आने वाले प्रसिद्ध व्यक्तियों की बात की जाए तो पुला सारण , भरता सारण , दौलत राम सारण , ताराचंद सारण , पंकज सारण , ओम प्रकाश सारण , लाला राम सारण , बलराम सारण , वीणा सारण , चेतनराम सारण , जगरामपुरी सारण , हरपाल सिंह सारण , बाबूराम सारण , ओमप्रकाश सारण , जोतराम सारण इत्यादि व्यक्ति हुए हैं।