राजस्थान के सबसे बड़े विश्वविद्यालय माने जाने वाले राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर और जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर में आज छात्र संघ चुनाव का मतदान हो रहा है, छात्र संघ चुनाव के प्रत्याशियों ने मतदाताओं को अपने समर्थन में लाने के लिए विभिन्न प्रकार के आइडियाज अपनाए।
राजस्थान विश्वविद्यालय हो या जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय , दोनों यूनिवर्सिटीज में प्रत्याशियों ने चुनाव नियमों एवं लिंगदोह कानून का जमकर उल्लंघन किया । जहां प्रत्याशियों को सिर्फ ₹5000 चुनाव के लिए खर्च करने होते हैं , वहां पर प्रत्याशियों ने प्रतिदिन दो से तीन लाख तक का खर्च किया।
लेकिन राजस्थान की दोनों यूनिवर्सिटीज के चुनाव को देखकर लगता है कि राजस्थान में विकास के मुद्दे पर यूनिवर्सिटी में वोट नहीं हो रहे हैं।
जैसा कि निहारिका जोरवाल को एनएसयूआई से टिकट नहीं मिलने के बाद निहारिका ने एनएसयूआई पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने जातिवाद को देखते हुए जाट प्रत्याशी को टिकट दिया , लेकिन यूनिवर्सिटीज में जातिवाद नहीं चलेगा । लेकिन नामांकन के दिन निहारिका जोरवाल ही एक मीणा जाति के अध्यक्ष पद हेतु प्रत्याशी भानु प्रताप मीणा के पैर पकड़ती नजर आ रही थी । क्योंकि भानु प्रताप मीणा मीणा समाज से हैं और निहारिका जोरवाल भी मीणा ।
ऐसे में निहारिका को लगता है कि उनकी जाति के वोट दो भागों में बंट जाएंगे और ऐसे में यह उनकी जीत के लिए अड़चन हो सकता है।
वहीं इसी प्रकार जोधपुर के जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष पद हेतु एबीवीपी से टिकट नहीं मिलने पर मोती सिंह जोधा ने निर्दलीय पर्चा भरा था , लेकिन एसएफआई के प्रत्याशी अरविंद सिंह भाटी व पूर्व अध्यक्ष रविंद्र सिंह भाटी सहित कई नेताओं ने राजपूत समाज की मीटिंग करके मोती सिंह को नामांकन वापस लेने के लिए राजी किया। क्योंकि मोती सिंह एवं अरविंद सिंह दोनों राजपूत जाति से हैं एवं ऐसे में राजपूत जाति के वोट दो भागों में बंटने के डर से राजपूत जाति के वरिष्ठ लोग मोती सिंह जोधा को मनाने का प्रयास कर रहे थे।
वहीं जोधपुर के जेएनवीयू से एबीवीपी प्रत्याशी राजवीर सिंह व एनएसयूआई से प्रत्याशी हरेंद्र चौधरी दोनों जाट जाति से आते हैं। और जानकारों की माने तो इन दोनों प्रत्याशियों में से एक प्रत्याशी को दूसरे प्रत्याशी का समर्थन देने के लिए काफी कोशिशें हुई , लेकिन दोनों को संगठनों से टिकट मिले होने के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राजस्थान छात्र संघ चुनावों में विकास का मुद्दा अब मुद्दा नहीं रहा ? , क्या विकास के मुद्दे पर जातिवाद हावी है ?
विभिन्न प्रत्याशी भले ही अपने संबोधन में विकास को मुद्दा बनाते हो , लेकिन हकीकत में ऐसा धरातल पर दिखाई नहीं पड़ता है।