भटनेर दुर्ग हनुमानगढ़
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भटनेर दुर्ग का निर्माण 286 से 298 ई. तक भूपत भाटी ने करवाया था। यह राजस्थान का सबसे प्राचीन दुर्ग है और भटनेर दुर्ग को बनाने में इटों का प्रयोग किया गया है। भटनेर दुर्ग का 12 वीं शताब्दी में अभय राव भाटी ने पुन जीर्णोद्धार करवाया था। यह दुर्ग दिल्ली मुल्तान मार्ग पर स्थित है जो कि प्राचीन समय में व्यापारिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण दुर्ग हुआ करता था। इस दुर्ग को भाटियों की मरोड़ कहते हैं घग्घर नदी के किनारे उत्तरी सीमा का पहरेदार जिसने सबसे ज्यादा विदेशी आक्रमण सहे हैं। यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है जिसमें मुस्लिम धर्म की महिलाओं ने भी जोहर किया था , 479 ई. में गजनी के का पौत्र रेणसी लाहौर में चघताई उजबेग से हारकर भटनेर शासक जगस्वात मांडणोत से शरण ली । जिससे है चघताई उजबेग ने इस दुर्ग पर आक्रमण किया और जिसके कारण यहां साका हुआ।
विश्नोई सम्प्रदाय के नियमों का विवरण……
1001 ईस्वी में मोहम्मद गजनवी ने भटनेर पर आक्रमण किया और 1206 ईस्वी में मोहम्मद गोरी के गवर्नर कुबाचा ने इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया था। 1206 ईस्वी में स्थित पर दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने आक्रमण किया। तैमूर लंग ने अपनी आत्मकथा तुजुक ए तैमुरी में इस दुर्ग को अपने जीवन काल का सबसे मजबूत दुर्ग बताया। 1536 ईसवी में हुमायूं के भाई कामरान के आक्रमण के समय बीकानेर के साथ अरिजीत सिंह का सेनापति खेतसी मारा गया, 1549 में ठाकुरसी राठौर का अधिकार हुआ , 1570 में इस दुर्ग पर अकबर का अधिकार हुआ , लेकिन अकबर ने दुर्ग को ठाकुरसी के पुत्र बागा को सौंप दिया ,1597 में अकबर के श्वसुर नसीर खान ने इस दुर्ग में किसी दासी से छेड़छाड़ की तब अजमेर की राय सिंह के सामंत तेजा ने उसे मार दिया था , 1805 ईसवी में मंगलवार के दिन बीकानेर के सुरत सिंह भाटी ने भटनेर शासक जब्ता सिंह भाटी को हराकर अधिकार कर लिया और इसी के बाद इसका नाम हनुमानगढ़ हो गया। इस दुर्ग में दिल्ली के सुल्तान ग्यासुद्दीन उद्दीन एल्बम के भाई शेर खान की कब्र तथा गुरु गोरखनाथ का मंदिर है।