गोदारा जाति का इतिहास ,‌‌ History Of Godara , गोदारा गौत्र का इतिहास

News Bureau
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गोदारा जाति का इतिहास

इस पोस्ट में आपको गोदारा गोत्र के बारे में इतिहास पढ़ने को मिलेगा , प्राचीन समय में गोदावरी नदी के किनारे रहने वाले लोगों को गोदारा कहते थे , गोदावरी नदी के किनारे रहने वाले लोग जब पलायन करके दूसरी जगह पर चले गए तो आम भाषा में उन लोगों को गोदारा कहा जाने लगा।

गोदारा जाति को राजा गुहा दत्त का वंशज भी माना चाहता है  , गोदारा कबीले के लोग प्राचीन समय में मध्य एशिया में रहते थी लेकिन समय के साथ वह उत्तरी पंजाब एवं दिल्ली के आसपास रहने लगे लेकिन सिकंदर के समय आक्रमणों से परेशान होकर कि यह लोग उत्तरी राजस्थान की ओर बढ़े , हालांकि गोदारा जाति का पूरा कबीला इस तरफ पलायन नहीं किया था। यहां पर जंगल प्रदेश को इन लोगों ने अपना निवास स्थल बना दिया।

जांगल प्रदेश में गोदारा कबीले के साथ बेनीवाल , सिहाग , पूनिया कबिले के लोग भी आए थे। यहां पर इन लोगों की समय के साथ बढ़ती जनसंख्या के बाद 1250 ईस्वी में गोदारा जाति के करीब 700 गांव थे ।

जंगल प्रदेश में आने के बाद गोदारा जाति के लोगों को किसी भी प्रकार के आक्रमण नहीं सहने पड़ते थे एवं किसी भी प्रकार का कर भी नहीं चुकाना पड़ता था।क्योंकि उस समय किसी भी प्रकार के बाहरी आक्रमणों की संभावना नहीं थी। यहां पर पांडू एवं कुबेर नामक चर्चित गोदारा शासक हुए। जिन्होंने गोदारा जाति के गांवों को मिलाकर एक राज्य स्थापित कर दिया। एवं पड़ोसी गांवों को भी अपने राज्य के साथ मिलाना शुरू कर दिया।

राव जोधा के पुत्र राव बिका के यहां आने पर प्रारंभ में तो गोदारों ने विरोध किया लेकिन बाद में कई शर्तों पर सहमति बनने के बाद पांडू गोदारा के वंशजों ने राव बीका को राज्य स्थापित करने में सहायता प्रदान की। इसके बाद राव बिका के वंश में राज्याभिषेक हमेशा गोदारा जाति के लोग ही किया करते थे।

गोदारा जाति का वर्तमान में विस्तार सिरसा , हिसार , सीकर ,भरतपुर, बाड़मेर , चुरू , गंगानगर, बीकानेर , जयपुर ,जोधपुर ,नागौर ,पाली ,जालौर, मध्यप्रदेश के मंदसौर ,नीमच ,देवास एवं महाराष्ट्र के अमरावती ,कलढोणा तक हैं।

गोदारा जाति के भारतीय सेना में शहीद हुए जवानों में मुख्य नाम चीमा राम ( बाड़मेर ) महेंद्र कुमार ( चुरू) हुकमाराम (बीकानेर ) हेमाराम (बेरीवाला तला ) आदि थे।

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कुछ इस प्रकार गोदारा जाति का इतिहास है।

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