Gumnam Safar me Rahi गुमनाम सफर में राही Hindi Poetry
Gumnam safar me Rahi Hindi Poetry
सफर दोनों का साथ शुरू हुआ था , मगर मंजिल अलग अलग थी।
मुझे किसी से मिलने की खुशी उसे अपनों से दूर होने का गम था।
मैं समझता रहा उसके जज्बातों को , मगर वह हंसता हंसता छुपाता रहा।
बीत ही गया सफर का वक्त , आया अचानक इक मोड़ था ।
दोनों का रास्ता बदल गया , बारिश ने मचाया शोर था।
वह चला गया अपनी मंजिल पर, मगर मैं भीगता रहा।
उसने देखा ना मुड़कर पीछे , घर की जिम्मेदारियों का अहसास था।
मैं भी चला गया देखते ही देखते , मगर पहुंचा न ठिकाने था ।
वह पहुंचते ही घर पर फोन मिलाया और सब को अपना हाल बताया।
मैं इतना नालायक कि पापा का फोन तक नहीं उठाया ।
पहुंचते ही मंजिल अपने , सबका आया ख्याल था।
अपनी जिम्मेदारियों का एहसास मुझे भी है , मगर मुझे सबको साथ लेकर चलना सीखना है।
✍️ Writing By – Payal Jaipal
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