सतीश पूनिया व कैलाश चौधरी फिर बीजेपी को हनुमान बेनीवाल के साथ गठबंधन को मजबूर करेंगे ?
राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होंगे लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियां जातिगत समीकरणों एवं क्षेत्रीय समीकरणों को साधने का प्रयास करना शुरू कर चुकी है , कांग्रेस पार्टी भी अलग-अलग जातियों के नेताओं को तवज्जो देना शुरू कर चुकी है वहीं प्रदेश की बीजेपी भी राष्ट्रीय बीजेपी के निर्देशानुसार विभिन्न स्तरों पर कार्यकर्ताओं को तैयार करना शुरू कर चुकी है।
राजस्थान में वैसे तो जाट, राजपूत , गुर्जर व मीणा वोट बैंक का काफी प्रभाव हैं, लेकिन पश्चिमी राजस्थान से लेकर जयपुर तक फ़ैले हुए जाट वोट बैंक को साधने के लिए कांग्रेस पार्टी हरीश चौधरी , दिव्या मदेरणा , हेमाराम चौधरी , गोविंद सिंह डोटासरा , मुकेश भाकर जैसे कई नेताओं को जाट नेता के तौर पर स्थापित करने की रणनीति में जुटी हुई हैं।
लेकिन बीजेपी के पास जाट वोट बैंक को साधने के लिए वर्तमान में कोई ऐसा चेहरा नहीं है , भले ही बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सतीश पूनिया को पद सौंप दिया हो लेकिन सतीश पूनिया जाट नेता के तौर पर बीजेपी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाए , वहीं भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव जीतने के बाद बाड़मेर की सांसद कैलाश चौधरी को जाट नेता के तौर पर स्थापित करने के लिए कैबिनेट मंत्री भी बनाया था लेकिन कैलाश चौधरी भी अपना कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाए।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ यही बड़ी मुसीबत थे कि जाट वोट बैंक को साधने के लिए एक ऐसे नेता की जरूरत थी जो चुनाव परिणाम को बदलने की ताकत रखता हो , और बीजेपी की इस जरूरत को सांसद हनुमान बेनीवाल ने पूर्ण किया एवं इसी वजह से बीजेपी ने हनुमान बेनीवाल के साथ गठबंधन किया था।
लेकिन बीजेपी के साथ रहे हनुमान बेनीवाल अब बीजेपी के विरोध में हैं ऐसे में बीजेपी के सामने जाट नेता के तौर पर राजस्थान में कोई खास प्रभाव जमाने वाला चेहरा नजर नहीं आता , क्या भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव में इस जरूरत को पूरा करने के लिए , फिर से हनुमान बेनीवाल का सहारा लेगी यह बड़ा सवाल है ?
भले ही बीते हुए समय में वसुंधरा राजे ने खुद को राजपूत समाज की बेटी एवं जाटों की बहु बताते हुए वोट बैंक को साधने का प्रयास किया था , लेकिन अब बीजेपी को नई रणनीति के साथ चुनाव लड़ना पड़ सकता हैं।
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कांग्रेस पार्टी एवं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हरीश चौधरी को जाट नेता के तौर पर स्थापित करने के लिए प्रयास किए , लेकिन समय के साथ मुख्यमंत्री गहलोत के गोविंद सिंह डोटासरा नजदीकी नेता बन गए उन्होंने खुद को जाट नेता के तौर स्थापित करने का प्रयास किया।