मेव जाति का इतिहास ( History Of Mev )
भारत की एक ऐसी जाति जिसका उल्लेख हिंदू मुस्लिम एवं बौद्ध तीन धर्मों में मिलता है, इस जाति का नाम है मेव
राजस्थान के अलवर और भरतपुर में मेव जाति मुख्यतः पाई जाती है राजस्थान के क्षेत्र को मेवाड़ भी कहते हैं संभवतः इस क्षेत्र को पहले मेवात के नाम से जाना जाता था जो कि मेव जाति से संबंधित था ।
बताया जाता है कि मेव जाति पहले हिंदू जाति थी , लेकिन समय के साथ इस जाति का धर्म भी बदल गया और कालांतर में इस जाति ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर दिया और यह मुसलमान हो गई , जिन मेव जाति को औरंगजेब , मीर कासिम या बलबन से इतिहासकार जोड़ते नजर आते हैं , लेकिन इनकी जड़ें आर्य से भी जुड़ी हुई है यानी कि मध्य एशिया की यह नस्ल जिसे वर्तमान में मेव कहा जाता है इसका पहले नाम मेंद था।
कहा जाता है कि 512 ईस्वी में जब मीर कासिम का जिक्र आता है तो जिक्र यह भी होता है कि सिंध में बड़ी तादाद में बौद्धों को इस्लाम में दीक्षित किया गया लेकिन जो इस्लाम में दीक्षित नहीं हुए , उनके कद काठी को देखते हुए राजाओं ने अपनी सेना में शामिल कर दिया और यह सैनिक धीरे-धीरे राजपूत हो गए , सारी परम्पराएं राजपूतों सी हो गई , लेकिन इसके बाद मोहम्मद गजनवी के भांजे से सादर मसूद गाजी ने इन सैनिकों से धर्म परिवर्तन करवाया और इसी तरह इस जाति का धर्म इस्लामिक शासकों के संपर्क में आने से इस्लाम हो गया।
कहा जाता है कि मीर कासिम के समय मेव जाति के लोग बौद्ध धर्म के अनुयाई थे लेकिन इससे पहले लिए वैदिक संस्कृति से भी जुड़े हुए थे , अरब से आने वाले यात्रियों ने अपने यात्राओं के वृत्तांत में इस जाति का उल्लेख किया है और इस जाति को बौद्ध धर्म की जाति बताया है।
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यानी कि कहा जाए तो सच यही है कि मेव जाति का इतिहास तो लंबा है, लेकिन इतिहास पन्ना पर उल्लेखित ना होने की वजह से इस जाति के पूर्वजों के बारे में पता लगाना मुश्किल हो जाता है। इस जाति का प्रभाव भारत में विशेष राजस्थान पंजाब एवं हरियाणा में दिखाई देता है।