भारत में मौसम की बढ़ती घटनाओं पर अंकुश लगाने के क्या कदम ?
देश में मौसम की वजह से लगातार परेशानियां का सामना करना पड़ रहा हैं, हिमालय में लगातार पिघलते ग्लेशियर, वहीं जम्मू कश्मीर में सर्दियों में भी बर्फ नहीं जमने की घटनाओं के बाद अब बाढ़, सूखा एवं अनियमित मानसून से हर व्यक्ति कहीं ना कहीं प्रभावित हो रहा है।
COP का 27 वां सम्मेलन मिस्र में हुआ, 28 वां सम्मेलन यूएई में हुआ, 2024 ई. के बीतते-बीतते एक और COP का सम्मेलन हो जाएगा, लेकिन भारत में जलवायु परिवर्तन को लेकर क्या प्रतिबद्धताएं हैं एवं इसको लेकर भारत की क्या तैयारी हैं ? इसके बारे में हम आज विस्तृत जानने की कोशिश करेंगे।
दुनिया के करीब 200 देशों ने 2015 में जलवायु के परिवर्तन को लेकर पेरिस में हुए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे एवं दुनिया के तापमान को 1.5 डिग्री से अधिक न बढ़ने के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की थी।
इसके तहत तय किया गया था कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जाएगा एवं जीवाश्म ईंधन का उत्सर्जन भी कम किया जाएगा। लेकिन विकास की दौड़ में शामिल देशों में जो देश विकास कर चुके हैं उनके लिए यह कहना आसान होगा लेकिन विकासशील देश के लिए यह काफी महत्वपूर्ण होगा कि जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कम किया जाए एवं मीथेन जैसी गैसों का भी कम उत्सर्जन किया जाए।
भारत जैसे देश जिनकी आधी से ज्यादा आबादी कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर है, इन देशों में मीथेन जैसी गैसों का उत्सर्जन अधिक होना सामान्य बात है क्योंकि कृषि एवं मवेशियों से मेथेन गैस का उत्सर्जन ज्यादा होता है।
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विकसित प्रदेशों को भी इसके लिए जिम्मेदारी लेनी होगी कि जब उन देश को भी विकासशील की श्रेणी में थे तब उन्होंने जीवाश्म ईंधन का भरपूर उत्सर्जन किया था, एवं विकसित देशों को इसके लिए विकासशील एवं गरीब देश की मदद भी करने के लिए आगे आना चाहिए, हालांकि कॉप की सम्मेलन में यह बात कही गई थी परंतु इसके लिए कोई मापदंड निर्धारित नहीं किए गए।
जलवायु परिवर्तन को लेकर भारत के वादे
भारत ने जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाओं पर विशेष ध्यान आकर्षित करने के साथ ही तय किया है कि 2023 तक का कुल बिजली उत्पादन का 50 फीसदी तक का हिस्सा स्वच्छ ऊर्जा से हासिल किया जाएगा।
इसके अलावा भारत का प्रयास है कि अतिरिक्त पेड़ लगाकर तीन अरब टन अतिरिक्त कार्बन को सोखने का कार्यक्रम बनाया जाएगा।
भारत ने दुनिया के सामने यह वादे सिर्फ किए ही नहीं बल्कि इस वादों को निभाने के लिए भी भारत ने इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया है एवं अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ाने के लिए कई योजनाओं का शुभारंभ किया है।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कॉप के 26वें सम्मेलन में कहा था कि भारत को 2070 नेता जीरो उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है।
भारत के रेलवे विभाग ने भी कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रयास शुरू किए हैं एवं रेलवे प्रत्येक वर्ष कार्बन के उत्सर्जन में 6 करोड़ टन की कमी करना चाहता हैं।
लेकिन इसके साथ ही भारत के सामने कई चुनौतियां भी है एवं कोयला मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले कोयले का उत्पादन 12% अधिक हुआ है जो की काफी चिंताजनक भी है।
भारत सरकार ने भी दावा किया कि 2019 से 2021 के बीच करीब 2000 वर्ग किलोमीटर में जंगल बड़े हैं लेकिन पर्यावरण एवं जलवायु के विशेषज्ञ कहते हैं कि यह केवल कागजी कार्यवाही है लेकिन धरातल पर जंगल का इतना विस्तार नहीं हुआ हैं।
लेकिन तमाम मुद्दों के बीच यह भी कहा जा सकता है कि भारत सरकार द्वारा कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रयास किया जा रहे हैं लेकिन यह प्रयास पर्याप्त कब होंगे ? इसके ऊपर फिलहाल कुछ कहना असंभव हैं।