राजस्थान में आरएलपी क्यों होती जा रही है कमजोर, क्यों उभर नहीं पाता राजस्थान में थर्ड फ्रंट

राजस्थान में आरएलपी क्यों होती जा रही है कमजोर, क्यों उभर नहीं पाता राजस्थान में थर्ड फ्रंट

राजस्थान में थर्ड फ्रंट आखिर क्यों नहीं उभर पाता है? ऐसा नहीं है कि राजस्थान में नेताओं ने भाजपा कांग्रेस के अलावा नई पार्टी बनाने की कोशिश नहीं की, कई बार राजस्थान के नेताओं ने तीसरी पार्टी बनाई तो कई बार राजस्थान से बाहरी पार्टियों को राजस्थान में लाकर चुनाव लड़ाया, लेकिन कोई भी पार्टी राजस्थान में खास प्रभाव नहीं छोड़ पाई।

2018 में अस्तित्व में आई हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से गठबंधन के लिए कांग्रेस के कई नेता तैयार नहीं है, वहीं भारतीय जनता पार्टी भी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से गठबंधन करना अब ठीक नहीं समझती।

2018 के चुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने तीन लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की, पंचायतीराज चुनाव में भी आरएलपी की ठीक-ठाक स्थिति रही। लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो हनुमान बेनीवाल के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने नागौर सीट पर गठबंधन करके हनुमान बेनीवाल के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा, भाजपा ने गठबंधन से इस सीट को जीत भी ली, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने गठबंधन करने के बाद से ही अगले चुनाव से पहले इस गठबंधन को तोड़ने के लिए एवं नागौर में भाजपा का मजबूत नेता स्थापित करने के लिए ज्योति मिर्धा से संपर्क शुरू किया।

2023 के विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की कोशिश की, पर सभी दल एक नहीं हो पाए। अतः हनुमान बेनीवाल के बनाए समीकरण फिर बिगड़ गए। 23 के विधानसभा चुनाव में आरएलपी की स्थिति कमजोरी रही और आरएलपी को एक विधानसभा सीट पर जीत मिली।

हालांकि आरएलपी के वोट परसेंटेज में इजाफा हुआ, लेकिन अब 24 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का एक बड़ा धड़ा हनुमान बेनीवाल का खुलकर विरोध कर रहा है, एवं भारतीय जनता पार्टी भी अब राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव नहीं लड़ेगी।

राजस्थान में क्यों नहीं उभर पाता थर्ड फ्रंट

अब बात करते हैं कि राजस्थान में थर्ड फ्रंट आखिर क्यों नहीं ऊपर पाता है, राजनीतिक जानकार मानते हैं कि राजस्थान में अगर कोई तीसरी पार्टी उभरने का प्रयास करती है तो इससे पहले दोनों दलों के स्थानीय स्तर के नेता मिलकर अटैक करते हैं और ऐसे में नए दल में बनने वाले नए नेता आगे बढ़ नहीं पाते, अगर थर्ड फ्रेंड कोई नेता जॉइन करता है तो उसका मुख्य कारण भी यही होता है कि उनकी प्रमुख दो पार्टियों से टिकट काट दी गई, सामान्य सी बात है कि अगर किसी नेता का जनआधार खत्म होता है तो पार्टी टिकट काटती हैं। अगर किसी नेता की भाजपा या कांग्रेस में अच्छी खासी मान मनुहार है तो स्वाभाविक तौर पर वह नेता बगावत करके थर्ड फ्रंट में जुड़ना पसंद नहीं करेगा।

परिणामस्वरूप दोनों पार्टियों से टिकट कटने के बाद अगर कोई नेता थर्ड फ्रंट में आता भी है तो उसका कोई खास प्रभाव नहीं होता है और वह बड़ी संख्या में जन आधार को भी थर्ड फ्रंट से नहीं जोड़ पाता हैं, कहीं ना कहीं मतदाताओं के मन में भी यही बात होती है कि कांग्रेस या बीजेपी की सरकार बनेगी तो थर्ड फ्रंट के नेता को वोट देने से क्या फायदा ?

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